जब जब निर्वाचन होते हैं, प्रत्याशी निरीह बन जाते।
याचक बन कर वोट मांगते, फिर दर्शन दुर्लभ हो जाते॥
पांच साल में एक बार वे, हाथ जोड़ कर बनें भिखारी।
तब ऐसा वे ढोंग रचाते, जब मति मारी जाय हमारी॥
सबसे बड़ी भूल यह होती, हम उनको पहचान न पाते।
उनका हाव भाव लख कर के, महा मूर्ख उल्लू बन जाते॥
जीत गए तो दर्शन दुर्लभ, सेवक तब स्वामी बन जाते।
हम भी उनके मतदाता हैं, मिलें अगर पहचान न पाते॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी
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