पहले नहीं हुआ करती थी, जैसी राजनीति अब होती।
घृणित आचरण के चलते वह, दिन-दिन निज मर्यादा खोती॥
पहले सभ्य, शिष्ट होते थे, राजनीति वाले मतवाले।
अब बहु बाहुबली घुस आए, जिनकी अपनी होती चालें॥
जब भी निर्वाचन होते हैं, सब से अधिक टिकट वे पाते।
भय से, छल से, निज दल को हैं जो जय दिलवाते॥
राजनीति नहिं सज्जन की अब, नहीं बाहुबल, जो धनवाला।
वही कभी कहलाया करता, प्रत्याशी था सबसे आला॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी
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