निर्भय हो चाहे जो करता,ऐसा पाकिस्तान।
लगता बहुत-बहुत भय खाता, अपना हिंदुस्तान॥
भारत के सैनिक का सिर जब, काटा पाकिस्तानी।
लगा हमारे आकाओं को, नहीं हुई हैरानी ॥
संजय या इंदिरा जी होतीं, नहीं इसे सह पातीं।
दुश्मन की छाती पर चढ़ कर, अच्छा पाठ पढ़ातीं॥
पता नहीं इससे भी अप्रिय, आगे क्या है होना।
इस शासन के रहते हमको, कब तक होगा रोना॥
-डॉ. रुक्म त्रिपाठी
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